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म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले कंसिस्टेंसी देखना क्यों जरूरी ?

ज्यादातर निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले ये देखते हैं कि उस फंड ने आखिरी एक साल में कितना रिटर्न दिया है। ऐसे फंड जिन्होंने इस साल सबसे अच्छे रिटर्न दिए हैं, हो सकता है कि कल को ये फंड उतना बेहतर परफॉर्म ना कर पाएं।यही वजह है कि वेल्थ मैनेजर म्यूचुअल फंड के परफॉर्मेंस की निरंरतरता को तरजीह देने का सुझाव देते हैं।

1. कंसिस्टेंसी क्या है ?

ऐसे म्यूचुअल फंड जो हमेशा अपने बेंचमार्क से ऊपर रिटर्न दें, वो कंसिस्टेंट फंड कहलाते हैं। मार्केट की हलचल के आधार पर फंड की नेट असेट वैल्यू (NAV)बढ़ेगी या कम होगी। हालांकि, जब तक ये अपने बेंचमार्क से नीचे ना जाए तब तक चिंता की कोई बात नहीं। जैसे आपने लार्ज कैप इक्विटी फंड में निवेश किया जो कि निफ्टी में बेंचमार्क्ड है। जनवरी 2014 में फंड के दो साल के रिटर्न निफ्टी से 8% से आगे थे। जबकि जनवरी 2015 में इस फंड ने निफ्टी से 2% कम रिटर्न दिया। इसके बाद अगस्त 2016 में इस फंड ने निफ्टी से 1% बेहतर परफॉर्म किया। इस तरह इस फंड की परफॉर्मेंस इनकंसिस्टेंट कही जाएगी। म्यूचुअल फंड ऐनालिस्ट ऐसे फंड को तरजीह देते हैं जो लंबे समय तक लगातार अपने बेंचमार्क रिटर्न्स को पछाड़ते रहते हैं।

 

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2. कंसिस्टेंसी कैलकुलेट कैसे की जाती है ?

कंसिस्टेंसी कैलकुलेट करने के कई तरीके हैं। आप फंड के एक साल के रिटर्न और उसके पांच साल के दौरान हर दिन के बेंचमार्क नोट कर लें। उदाहरण के लिए, आप 1 अप्रैल 2011 तक फंड का एक साल का रिटर्न और बेंचमार्क कैलकुलेट कर लीजिए। इसके बाद 2 अप्रैल 2011 के हिसाब से ये कैलकुलेट कीजिए, फिर 3 अप्रैल 2011, फिर 4 अप्रैल 2011…इस तरह 1 जुलाई 2016 तक का कैलकुलेशन कर लीजिए। इसके बाद आप ये देखिए कि कितने बार इस फंड ने अपने बेंचमार्क से ऊपर रिटर्न दिया है। इस मापदंड पर फंड की परफॉर्मेंस अगर बेहतर होगी, तो उसकी कंसिस्टेंसी भी अच्छी मानी जाएगी। आखिर में, फंड की कंसिस्टेंसी की तुलना उससे मिलते-जुलते फंड से कर के ही कोई फैसला करें।

3.कंसिस्टेंसी एक अहम पैरामीटर क्यों है ?

परफॉर्मेंस में कंसिस्टेंसी इसलिए अहम है क्योंकि ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड से कोई भी निवेशक औसत रिटर्न से बेहतर पाना चाहेगा। एक कंसिस्टेंट और भरोसेमंद फंड ऐसा ही करता है। इसके अलावा कंसिस्टेंसी की वजह से आपको पॉइंट टू पॉइंट रिटर्न देखने और उस वक्त अच्छा परफॉर्म कर रहे फंड्स पर ध्यान देनी की ज़रूरत नहीं होती। इसकी वजह ये है कि पॉइंट टू पॉइंड रिटर्न सिर्फ एक दिन के निवेश और रिटर्न के हिसाब से होता है। जिस पीरियड में आपने फंड की परफॉर्मेंस मापी, अगर उसमें परफॉर्मेंस बेहतर है तो भी ये रिटर्न को काफी बढ़ा सकता है, फिर भले ही वो फंड खराब परफॉर्मर हो। इसलिए फंड की परफॉर्मेंस को अलग अलग वक्त में या अलग अलग मार्केट में देखने से ये पता चल जाता है कि ये फंड हमेशा अच्छा परफॉर्म करता है या नहीं।

source: Navbharat Times

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